अनार में ऑयली स्पॉट रोग की रोकथाम
अनार में ऑयली स्पॉट रोग को तेल्या/बैक्टीरियल ब्लाइट/नोडल ब्लाइट और लीफ स्पॉट्स के नाम से जाना जाता है। ये रोग बैक्टीरिया (झंथोमोनस ऑक्सीनोपोडीस पीवी पूनीके) के कारण होता हैं।
वर्तमान में यह रोग बड़े पैमाने पर फैला हुआ है और सभी प्रमुख अनार उत्पादक राज्य जैसे महाराष्ट्र, कर्नाटक, आंध्रप्रदेश और गुजरात इसमें शामिल हैं।
अनार में ऑयली स्पॉट्स रोग के लक्षण:
- प्रारंभिक रूप में फलों में 2-3 दिनों के अंदर भूरे-काले रंग के पानीदार धब्बे/ बैक्टीरिया से घिरे हुए धब्बे उभर आते हैं। (यह दिखने में ऑयली नजर आता है)। इसके एडवांस स्टेज में एल/वाई या स्टार जैसा आकार फलों पर उभर आता है और फल सड़ा हुआ नजर आने लगता है।
- साथ ही यह फूलों, पत्तों और टहनियों को भी प्रभावित करने लगता है।
- अनुकूल स्थितियों में, धब्बों का आकार बढ़ने लगता है, असीमित घेरों के साथ गहरे भूरे धब्बे उभरने लगते हैं, जिससे फलों में दरार आ जाती है। यह रोग पैदावार में 90 प्रतिशत तक नुकसान करता है।
रोगों के बढ़ने के लिये अनुकूल परिस्थितियां:
उच्च तापमान और आर्द्रता की निम्न मात्रा, दोनों ही इस रोग को बढ़ाने के लिये अनुकूल होते हैं। जीवाणु के बढ़ने के लिये उपयुक्त तापमान 30 डिग्री सेल्सियस होता है; इसके लिये अधिकतम तापमान 52 डिग्री सेल्सियस होता है। यह रोग जुलाई से सितंबर महीने में तेजी से फैलता है। रोग की गंभीरता जून और जुलाई में बढ़ जाती है और सितंबर और अक्टूबर महीने में यह अपने अधिकतम पर पहुंच जाता है। बैक्टीरियल कोशिकाएं मिट्टी में 120 दिनों से अधिक समय तक जीवित रह सकती हैं और इसका मौसम खत्म हो जाने के बाद भी पत्तों के गिर जाने के बाद भी यह जीवित रहते हैं।
रोग का प्रसार:
संक्रमित फल और टहनियां इनोकूलम के प्राथमिक स्रोत होते हैं। बैक्टीरिया के फैलने का दूसरा माध्यम बारिश और स्प्रे का छिड़काव, सिंचाई का पानी, छंटाई के उपकरण, इंसान और कीटों के वाहक होते हैं। उनका प्रवेश घावों और प्राकृतिक रूप से खुले मार्गों द्वारा होता है।
नियंत्रित करने के उपाय:
- मिट्टी की सेहत के प्रबंधन के लिये जैविक खादों का उपयोग करना महत्वूर्ण होता है, इससे उनकी अपनी प्रतिरोधक क्षमता बनी रहती है।
- पोषक तत्वों के एकात्मक प्रबंधन के आधार पर मिट्टी का परीक्षण।
- स्वच्छ खेती।
- संक्रमित अवशेषों को नष्ट करना।
- स्थानीय संगरोध उपयोगों का सख्ती से पालन करना।
- रोगमुक्त क्षेत्र से पौधारोपण के लिये सेहतमंद पौधों का चुनाव करना।
- प्रयोग करने से पहले खेती के उपकरणों को संक्रमणरहित करना।
- महामारी क्षेत्र में मृग बहार से बचाव करना।
- तना पर गेरू पेस्ट का प्रयोग।
- छंटाई के बाद बोर्डो मिक्चर (बी.एम.) 1% का प्रयोग।
- कली निकलने पर 0.5% का बी.एम.छिड़काव
- 0.25 ग्राम + कॉपर हाइड्रोऑक्साइड पर एंटीबायोटिक का छिड़काव (स्ट्रेप्टोसाइकलिन) 3.0 ग्राम/लीटर पानी के साथ। टिप्स: एंटीबायोटिक के छिड़काव के दूसरे दिन तुरंत ही 0.1 प्रतिशत माइक्रोन्यूट्रिएंट्स का छिड़काव, यह पौधों की रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाता है।
- कॉपर ऑक्सिक्लोराईड 3.0 ग्राम+मैन्कोझेब और झायनेब 0.25 प्रतिशत प्रति लिटर पानी में घोलकर छिड़काव करें।
- आराम अवधि के दौरान: 00:52:34 5.0 ग्राम+1.0 ग्राम चिलेटेड कॉम्बी/लीटर पानी में छिड़काव। 8 दिनों के अंतराल के बाद 00:00:50 5.0ग्राम+1.0 ग्राम बोरॉन/लीटर पानी में छिड़काव करें।