केले की खेती युक्तियाँ

Climate & Soils

जलवायु और मिट्टी

Land Preparation

भूमि की तैयारी

Seed Rate & Spacing

बीज दर और अंतराल

Intercultural Operations

इंटरकल्चरल संचालन

Crop Nutrition Management

फसल पोषण प्रबंधन

What nutrients does a Banana plantation require?

केले के पौधों को किन पोषक तत्वों की आवश्यकता होती है?

Irrigation Management

सिंचाई प्रबंधन

Weeds & Weed Management

खरपतवार और खरपतवार प्रबंधन

कीट रोग और रोग प्रबंधन

कीट रोग और रोग प्रबंधन

पौधों के रोग और रोग प्रबंधन

पौधों के रोग और रोग प्रबंधन

Harvesting & Post Harvest Measures

फसल काटने और फसल काटने के बाद के उपाय

केला अनिवार्य रूप से एक उष्णकटिबंधीय पौधा है जिसे गर्म और आर्द्र जलवायु की आवश्यकता होती है। ठण्डी जलवायु में, फसल को पकने में अधिक समय लगता है। इसकी संतोषजनक वृद्धि के लिए इसे पूरे वर्ष में वितरित 1700 मिमी वर्षा की आवश्यकता होती है। पानी रुकाव हानिकारक है और पनामा विल्ट जैसी बीमारियों का कारण बन सकता है।

अच्छी तरह से सूखी दोमट मिट्टी केले की खेती के लिए उपयुक्त हैं। क्षारीय और खारी मिट्टी से बचा जाना चाहिए। केले की खेती के लिए मिट्टी पीएच (pH) की इष्टतम सीमा 6.5 – 7.5 है।

केले के रोपण से पहले, ढैंचा, लोबिया जैसी हरी फसल उगाई जा सकती हैं। खेत को 2-4 बार जोता और समतल किया जा सकता है। ढेलों को तोड़ने और मिट्टी की अच्छी जुताई के लिए रोटोवेटर या पाटा (हैरो) का उपयोग किया जाता है।

1.5 x 1.5 मीटर की रोपण दूरी में प्रति एकड़ 1777 पौधे समाते हैं। हालाँकि, अधिकतम उपज प्राप्त करने के लिए, 1.2 x 1.5 मीटर का अंतराल रखा जा सकता है। सकर्स गड्ढे के बीच में लगाए जाते हैं और आसपास की मिट्टी को जमा दिया जाता है। गहरे रोपण से बचा जाना चाहिए। रोपण के तुरंत बाद खेत को सींचा जाता है।

आमतौर पर फावड़े से खुदाई का उपयोग किया है और खरपतवार को नियंत्रित करने में सामान्यतः साल में चार बार फावड़े से खुदाई प्रभावशाली रहती हैं। केले की खेती में अवांछित कल्लों (सकर्स) को निकालना सबसे महत्वपूर्ण कार्यों में से एक है और इसे डीसकरिंग के रूप में जाना जाता है। कुंड (फरो) रोपण के मामले में, जल भराव से बचने के लिए बरसात के मौसम में मिट्टी चढ़ाना किया जाना चाहिए। की रोपण के लिए मृदुकरण किया जाना चाहिए। सहारा देना (प्रॉपिंग) एक अन्य काम है जो तेज गति वाले हवाओं के समय पौधों को गिरने से बचाने के लिए किया जाता है। अतिरिक्त पत्तों की छँटाई रोग को पुरानी पत्तियों के माध्यम से फैलना कम करने में सहायता करती है। बैगिंग (गुच्छा ढकना) बाग़ान मालिक का एक अन्य सांस्कृतिक कार्य है जिसे ठंड, तेज धूप, झल्लरीपक्ष (थ्रिप्स), और गुबरैलों के हमले के विरुद्ध बचाव के लिए उपयोग किया जाता है।

बहुत अधिक वानस्पतिक विकास की आवश्यकता वाली एक बागान फसल होने के कारण केले को अपेक्षाकृत बड़ी मात्रा में पोषक तत्वों की आवश्यकता होती है।

नत्रजन , फॉस्फोरस, पोटाशियम, कैल्शियम, मैग्नीशियम, सल्फर, आयरन, मैंगनीज, ज़िंक, कॉपर, और बोरोन

दीपक फर्टिलाइजर्स उर्वरक उत्पादों की एक श्रृंखला प्रदान करता है जिन्हें केले के उत्पादक मिट्टी में और ड्रिप सिस्टम के माध्यम से भी प्रयोग कर सकते हैं। केला उत्पादकों द्वारा पालन किया जाने वाला कार्यक्रम नीचे सूचीबद्ध है:
ड्रिप सिंचाई सुविधाओं से रहित केले के बागान मालिकों के लिए अनुशंसित उर्वरक अनुसूची नीचे दी गई है (तालिका 1):

केले के पौधे लगाने वालों के लिए अनुशंसित फर्टिगेशन नीचे दिया गया है जिनके पास ड्रिप सिंचाई सुविधाएँ हैं (तालिका 2):

(या)

केले के उद्यान के लिए उर्वरक उत्पादों के पत्तियों पर छिड़काव (फोलियर स्प्रे) प्रयोग की अनुशंसा (तालिका 3)

केले के पौधे को जिसे पानी प्यारा है, अधिकतम उत्पादकता के लिए पानी की बड़ी मात्रा की आवश्यकता होती है। रोपण के तुरंत बाद सिंचाई करें। बागान भूमि के केलों में 4 दिनों के बाद जीवन-रक्षक सिंचाई करें उसके बाद सप्ताह में एक बार सिंचाई करें। हर बार खाद प्रयोग करने के बाद खेतों की भारी मात्रा में सिंचाई करें। रोपाई से 4थे महीने तक, 5-10 लीटर/पौधा/दिन, 5वें से कली फूटने तक 10-15 लीटर/पौधा/दिन और कली फूटने से फसल काटने के 15 दिन पहले तक लीटर/पौधे/दिन ड्रिप सिंचाई का उपयोग करें।

पौधों के बीच में 1.0 लीटर/एकड़ की दर से ग्लाइफोसेट जैसे गैर-चयनात्मक उगने-के-पश्चात् तृणनाशकों के प्रयोग की अनुशंसा की जाती है। पौधों की कूंडियों पर छिड़काव बिल्कुल भी नहीं किया जाना चाहिए।

  1. कंद घुन (कॉर्म वीविल) का प्रबंधन
    • तने के आसपास की मिट्टी में कार्बोफुरन दानों का 10-20 ग्रा./पौधा मृदा प्रयोग
  2. तने के घुन का प्रबंधन
    • सूखी पत्तियों को समय-समय पर हटाएँ और पौधों को साफ रखें। हर महीने कल्लों (सकर्स) की छँटाई करें।
    • 10 ग्राम प्रति पौधा कार्बोफुरन 3जी का प्रयोग
    • खाद के गड्ढे में संक्रमित सामग्रियाँ नहीं डालें। संक्रमित पेड़ों को उखाड़ कर, टुकड़ों में काट कर जला देना चाहिए।
  3. केले का चेंपा (एफिड) प्रबंधन
    • फॉस्फैमिडोन 2 मि.ली./लीटर या मिथाइल डेमेटोन 2 मि.ली./लीटर या एसेफेट 1.5 ग्राम की दर पर या एसिटामाइप्रिड 0.4 ग्राम/लीटर पानी जैसे कीटनाशकों का छिड़काव प्रयोग एफिड्स को नियंत्रित करने में सहायता करता है।
  4. सूत्रकृमि (नेमेटोड) प्रबंधन
    • 40 ग्राम कार्बोफुरन 3जी के साथ कल्लों (सकर्स) का पूर्व-उपचार। यदि पूर्व-उपचार नहीं किया जाता है, तो रोपण के बाद एक महीने में प्रत्येक पौधे के आसपास कार्बोफुरन 40 ग्राम/पौधे की दर से मृदा प्रयोग।
  1. करपा (सिगाटोका लीफ स्पॉट) प्रबंधन
    • प्रभावित पत्तियों को हटाएँ और जला दें। कवकनाशियों में से किसी भी एक का छिड़काव करें जैसे कि कार्बेन्डाज़िम 1 ग्रा./लीटर की दर, मानकोज़ेब 2 ग्रा./लीटर की दर, कॉपर ऑक्सीक्लोराइड 2.5 ग्रा./लीटर की दर से।
    • थायोफैनेट मिथाइल 400 ग्राम/एकड़ + अलसी का तेल 2% या क्लोरोथैनिल 400 ग्राम/एकड़ का छिड़काव करें
  2. श्यामव्रण(एन्थ्रेकनोज) प्रबंधन
    • कॉपर ऑक्सीक्लोराइड 0.25% या बोर्डोक्स मिश्रण 1% या क्लोरोथैलोएल 0.2% या कार्बेनडेज़िम 0.1% का छिड़काव करें।
    • फसल कटाई के बाद फलों को कार्बेन्डेज़िम 400 पीपीएम में डुबाना।
  3. गुच्छित चूड़ (बंची-टॉप) प्रबंधन
    • केला चेंपा (एफिड) बंची-टॉप वायरस रोग का वेक्टर है। इसे नियंत्रित करने के लिए फॉस्फैमिडोन 1 मिलीलीटर/लीटर या मिथाइल डेमेटोन 2 मिलीलीटर/लीटर या मोनोक्रॉटोफ़ोस 1 मिलीग्राम / लीटर का छिड़काव करें। छिड़काव को मुकुट (क्राउन) और छद्मतने (स्यूडोस्टेम) के तले की ओर जमीनी स्तर तक 21 दिनों के अंतराल पर कम से कम तीन बार निर्देशित किया जा सकता है।
    • वायरस-मुक्त कल्लियों (सकर्स) का उपयोग करें, और बगीचे में वायरस से प्रभावित पौधों को भी नष्ट कर दें।
  4. पैनामा रोग प्रबंधन
    • बुरी तरह प्रभावित पौधों को उखाड़ कर नष्ट कर दें।
    • प्रभावित पौधों को हटाने के बाद गड्ढ़े में 1 – 2 किलोग्राम चूना लगाएँ।
  5. फ्युजैरियम मुरझाना प्रबंधन
    • संक्रमित पेड़ों को हटाना और 1-2 किलो/गड्ढे की दर से चूने का प्रयोग
    • रोपण के बाद 2सरे, 4थे और 6टे महीने पर कार्बेनडैजिम या पी.फ्लोरोसेंस 60 मिलीग्राम/ कैप्सूल/पेड़ की दर से कैप्सूल का प्रयोग। घनकंद (कॉर्म) में 450 पर 10 सेमी गहराई का एक छेद बनाकर कैप्सूल लगाया जाता है।
    • 3 मि.ली. 2% कार्बेनडैज़िम वाला कॉर्म इंजेक्शन
    • कार्बेनडैज़िम 0.1% से स्पॉट को भिगोएँ।

किस्मों, मिट्टी, मौसम की स्थिति और ऊँचाई पर निर्भर करते हुए फूल आने के बाद गुच्छे 100 से 150 दिनों में परिपक्वता प्राप्त कर लेते हैं। फसल कटाई की दिनांक से काफी पहले केले के पौधों की सिंचाई रोक देनी चाहिए।

Mahadhan SMARTEK